समाज में जेंडर संवेदीकरण के लिए जमीनी प्रयास आवश्यक : पद्मश्री डॉ. जनक पलटा मगिलिगन

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*समाज में जेंडर संवेदीकरण के लिए जमीनी प्रयास आवश्यक : पद्मश्री डॉ. जनक पलटा मगिलिगन

*विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में स्त्री-पुरुष असमानता को कम कर बन सकता है उन्नत भारत: प्रो. आशा शुक्ला, कुलपति*
*‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी में महिला सशक्तीकरण और जेंडर समानता’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन*

महू। जेंडर संवेदनशीलता तथा जेंडर समानता से ही महिला सशक्तीकरण किया जा सकता है. समाज में अगर समानता नहीं है तो समतामूलक समाज की स्थापना कल्पना नहीं की जा सकती है. जेंडर संवेदनशील समाज में न कोई स्त्री है ण कोई पुरुष सब इंसान हैं. हमें जेंडर संवेदनशील समाज बनाने की आवश्यकता है. समाज में लिंगानुपात विषमता का शिकार बच्चियों को होना पड़ता है. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जेंडर संवेदनशीलता स्थापित करने की आवश्यकता है तभी हम उन्नत भारत की संकल्पना साकार कर सकते हैं. भारतीय ज्ञान विरासत में महिलाएं सदैव सुधारवादी व्यवस्था की पोषक रही हैं। उक्त उद्बोधन मध्य प्रदेश विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद, विज्ञान भारती, प्रौद्योगिकी संस्थान इंदौर सहित प्रदेश की महत्वपूर्ण संस्थाओं तथा डॉ. बी. आर. अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू के संयुक्त तत्वावधान में ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी में महिला सशक्तीकरण और जेंडर समानता’ विषय पर 22 दिसंबर से 25 दिसंबर, 2021 तक चलने वाली राष्ट्रीय संगोष्ठी में पद्मश्री डॉ. जनक पलटा मगिलिगन ने मुख्य अतिथि के तौर पर व्यक्त किये.

डॉ. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि विश्वविद्यालय तथा मध्य प्रदेश विज्ञान भारती द्वारा अपनी अकादमिक व सामाजिक प्रतिबद्धताओं के लिए यह विज्ञान सम्मलेन अति महत्वपूर्ण है। तकनीकी और विज्ञान के क्षेत्र में सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक वास्तविकताओं सहित समग्र विकास में महिलाओं के योगदान को उनके निजी जीवन से जुड़ी धारणाओं से देखना आवश्यक हो जाता है. विश्वविद्यालय में स्थापित विज्ञान एवं प्रौद्योगकी से आध्यात्मिकता पीठ लगातार भारतीय विज्ञान और सनातन ज्ञान को विकसित कर शोध कार्य कर रही है. अकादमिक बहस और चिंतन द्वारा जेंडर मुद्दों को सरलीकृत किया जा रहा है। विश्वविद्यालय का महिला अध्ययन विभाग लगातार जेंडर मुद्दों पर अध्ययन कर रहा है. इसी प्रयास की कड़ी में ब्राउस द्वारा बनाये गए जेंडर संवेदीकरण पाठ्यक्रम को आधार पाठ्यक्रम को पूरे मध्य प्रदेश में पढ़ाने की अनुशंसा मध्य प्रदेश शासन ने कर दी है.
आई.आई.टी. इंदौर सहआचार्य एवं विभागाध्यक्ष डॉ. निर्मला मेनन ने कहा कि समाज में वैज्ञानिक टेम्परामेंट बहुत आवश्यकता है. प्राथमिक शिक्षा में विज्ञान और कला के विषयों में प्रवेश के समय स्त्री-पुरुष आंकड़ों को अंतर कम देखने को मिलता है वहीं यह आंकड़ा उच्च शिक्षा में काफी बदल जाता है. उच्च शिक्षा में स्त्रियों की संख्या कम हो जाते है. इस विभेद को मिटाने की आवश्यकता है. ब्राउस के संकायाध्यक्ष प्रो. डीके वर्मा ने जेंडर असमानता पर केन्द्रित प्रस्तुति करते हुए कहा कि शासकीय क्षेत्र की तुलना में निजी क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी अधिक है. हमें समाज के सभी स्तर पर जेंडर असमानता को दूर करने की जरुरत है.
ब्राउस के प्रो. शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने कहा कि सत्य, ज्ञान और जेंडर के सन्दर्भों को वस्तुनिष्ठता से अलग देखना चाहिए. मीडिया प्रौद्योगिकी के विस्तार में महिला सशक्तीकरण और जेंडर समानता के निहितार्थ को समग्रता में देखने की जरूरत है. संकायाध्यक्ष ब्राउस डॉ. मनीषा सक्सेना ने कौशल विकास में तकनिकी के प्रयोग को जेंडर समानता के लिए महत्वपूर्ण बताया उन्होंने देशज ज्ञान और वैज्ञानिकता को उल्लेखित किया.
महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के महिला अध्ययन विभाग की सह-आचार्य एवं अध्यक्ष डॉ. सुप्रिया पाठक ने उद्बोधन में कहा कि जेंडर की सामाजिक निर्मिति का प्रभाव वैज्ञानिक प्रगति के उपयोग पर पड़ता है. जेंडर समानता के लिए हमें जेंडर स्टीरियोटाइप मानसिकता से बाहर आकर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने की जरुरत है.
विभा- एमपीवीएस-21 के आयोजन सचिव इंजीनियर प्रजातंत्र गांगले ने कहा कि यह विज्ञानं सम्मलेन एवं प्रदर्शनी मध्य प्रदेश की विज्ञान नीति को समृद्ध करने में सहायक होगी. देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर के डॉ. राजिव दीक्षित ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी में जेंडर समानता पर अपने विचार रखे.
ब्राउस नैक मीडिया सलाहकार प्रो. सुरेंद्र पाठक ने कहा कि भारतीय सनातन परंपरा में जेंडर असमानता नहीं देखने को मिलती है बाद में विदेशी आक्रांताओं के शासन के बाद समाज में ऐसी कुरीतियां एवं जड़ताएं देखने को मिली जिन्हें वर्तमान में ख़त्म करने की जरुरत है. आई.आई.टी. इंदौर की डॉ. अरुणा तिवारी ने कहा कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के जरिये जेंडर समानता को जन-जन तक पहुँचाने की जरुरत है.
विक्रम विश्वविद्यालय की डॉ. चित्रलेखा कड़ेल ने आधार वक्तव्य में कहा कि वर्ष1991 में विज्ञान भारती की स्थापना हुई तब से आज तथा यह लगातार सामाजिक विषयों को भारतीय ज्ञान परंपरा के अनुरूप कार्य में निरंतर कार्य कर रहा है. वर्तमान में यह 32 राज्यों में विस्तारित होकर विज्ञान सम्मेलनों का आयोजन कर रहा है.
ब्राउस कुलसचिव डॉ. अजय वर्मा ने स्वागत वक्तव्य में कहा कि यह विज्ञान सम्मलेन भारतीय मूल्यों को वैश्विक फलक पर पहुँचाने के लिए प्रतिबद्ध है। निरंतर आधुनिकीकरण हो रहा है। जेंडर मुद्दों पर में भारतीय दृष्टि और भारतीय ज्ञान परम्परा को केंद्र में रखने की जरुरत है।
कार्यक्रम समन्वयक डॉ. मनोज कुमार गुप्ता ने कार्यक्रम की रूपरेखा, डॉ. अजय दुबे ने समन्वय, डॉ. प्रिया त्रिवेदी ने धन्यवाद ज्ञापन तथा सुचित्रा अग्रवाल ने तकनीकी सहयोग प्रदान किया. इस अवसर पर सभागार में विद्यार्थी, शिक्षक तथा कर्मचारी सहित आभासी मंच से प्रतिभागी जुड़े रहे.

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