संविधान और मौलिक अधिकार के बीच मीडिया अ मानवीय भूमिका अपेक्षित

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मीडिया, मौलिक अधिकार और संवैधानिक अपेक्षाएं राष्ट्रीय संगोष्ठी

महू/अहमदाबाद। मानव अपने आप में क्या है, मानव में जो मूल्य हैं यदि वे स्वयं में आते हैं तभी सकारात्मक परिवर्तन होते हैं, यदि पत्रकार एकजुट होकर मूल्य निष्ठा को अपनाते हैं तो सुधार हो सकते हैं। जिस प्रकार सरकारें बनती हैं और कैसे लोग नेतृत्व के लिए चुने जाते हैं वह हम सभी समझते हैं मूल परिवर्तन तो मूल्यों के साथ जीने से ही होगा। हम बुद्धि की बात तो करते हैं पर हृदय की बात नहीं करते गुजरात विद्यापीठ के कुलनायक डॉक्टर राजेंद्र खेमानी ने राष्ट्रीय वेबीनार “मीडिया, मानव अधिकार और संवैधानिक अपेक्षाएं” की अध्यक्षता करते हुए कही। इससे पूर्व वरिष्ठ पत्रकार डॉ. प्रकाश हिंदुस्तानी ने कहा कि मानव अधिकार के मामले में भारत सौभाग्यशाली रहा है भारत की प्राचीन ग्रंथों में किसी न किसी रूप में मानव अधिकारों की चर्चा रही है, वहीं संविधान में अवस्थित है। मीडिया की संवैधानिक अपेक्षाओं और मानव अधिकारों की सुरक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आज भी लोग अपने अधिकारों और समस्याओं के लिए सरकारों के बजाय मीडिया में आते हैं और मीडिया आमतौर पर इस कार्य को गंभीरता से करता है। मीडिया हारमनी शोध पीठ के आचार्य प्रो.संतोष तिवारी में संविधान में निहित मूलभूत अधिकारों की व्याख्या करते हुए कहा कि दुखद बात यह है कि यह सब कुछ होते हुए भी ‘हेट स्पीच’ को लेकर आज तक किसी को सजा नहीं हुई। आज ‘हेट स्पीच’ पूरे मीडिया पर हावी है यदि हमारा संविधान इवॉल्विंग संविधान है । आज आवश्यकता है शीघ्र न्याय की। जिसे सुनिश्चित करने का काम न्यायपालिका को करना चाहिए। गुजरात विश्वविद्यालय स्कूल आफ लॉ के प्रोफेसरों निदेशक डॉ कौशल कुमार रावत ने भारतीय संविधान में निहित मूल अधिकारों और मार्गदर्शक सिद्धांतों की व्याख्या करते हुए कहा कि भारतीय न्यायालय मानवाधिकारों, मीडिया की आजादी पर स्वयं संज्ञान लेकर मीडिया की स्वतंत्रता सुरक्षा करते रहे हैं। फिर भी अभी और स्वतंत्रता और स्वायत्ता की आवश्यकता है।
राष्ट्रीय सेमीनार का आयोजन डॉ बी आर अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू और गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद के शांति संशोधन केंद्र और पत्रकारिता व जनसंचार विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया था।
राष्ट्रीय सेमिनार के प्रारंभ में गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद के शांति संशोधन केंद्र के विभागाध्यक्ष डॉ प्रेम आनंद मिश्रा ने अपने प्रस्तावना वक्तव्य में कहा कि वैश्विक स्तर पर मीडिया की स्थिति मानव अधिकारों को लेकर दुविधा की रही है। यदि मीडिया मानव अधिकार के मुद्दों को भी नहीं उठाती है तो मीडिया की नैतिकता कटघरे में आ जाती है। प्रोफेसर सुरेंद्र पाठक, परामर्शी, ब्राउस ने कहा कि मीडिया मानव केंद्रित होना चाहिए। संविधान मूल रूप से मानवीय अपेक्षाओं पर केंद्रित होते हैं। संकीर्ताओं में मीडिया परिभाषित नहीं हो सकता है। राष्ट्रीय संगोष्ठी में त्रिभुवन विश्वविद्यालय काठमांडू नेपाल के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग की व्याख्याता शिसेनु पोडियाल ने अनेक उदाहरण देकर बताया कि नेपाल में अनेक मीडिया वैधानिक संस्थाएं मीडिया अधिकारों की सुरक्षा के प्रति सचेत हैं। एमिटी विश्वविद्यालय, नोएडा की एसोसिएट प्रोफेसर अंशु अरोरा ने कहा की पत्रकार और मीडिया को बहुत चुनौतियों के बीच में आकर काम करना पड़ता है। कभी-कभी उन पर हमले होते हैं दबाव बनाए जाते हैं, महिला पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार भी होता है । मीडिया शिक्षा में इस बात को जोड़ा जाना चाहिए कि ऐसी परिस्थितियों में किस प्रकार अपने दायित्व का निर्वाह किया जाए। त्रिभुवन यूनिवर्सिटी नेपाल में लॉ विभाग की प्रोफेसर रोशनी पोडियाल वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि मीडिया की भूमिका मौलिक अधिकार और संविधान के बीच में होती है और मीडिया को प्रजातंत्र की सुरक्षा और नागरिकों को शिक्षित करना मुख्य कार्य होता है। जिम्मेदार मीडिया के बिना प्रजातंत्र सुरक्षित नहीं है। नेपाल के संविधान में अनेक प्रावधानों से मीडिया की स्वतंत्रता को सुरक्षित करने का प्रयास किया गया है। राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन पर गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग विभागाध्यक्ष एवं अधिष्ठाता प्रोफेसर पुनीता हारने ने सभी का आभार व्यक्त किया गोष्ठी में बड़ी संख्या में गुजरात विद्यापीठ के पत्रकारिता विभाग के शिक्षक एवं अध्यापक शांति संशोधन केंद्र के शिक्षक एवं ब्राउस के शिक्षकों और विद्यार्थियों की उपस्थिति रही।

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