इंदौर में एक पहलवान के लोटे से निकली थी विश्वप्रसिद्ध गेर, देश विदेश से देखने आते हैं लोग

इंदौर में एक पहलवान के लोटे से निकली थी विश्वप्रसिद्ध गेर, देश विदेश से देखने आते हैं लोग

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Rang Panchami 2022: कहा जाता है गेर निकालने की परंपरा होलकर वंश के समय से ही चली आ रही है. लेकिन एक कहानी और है जिसे गेर से जोड़कर देखा जाता है.

इंदौर: दो साल बाद आज फिर इंदौर में रंगपंचमी पर गेर निकलेगी. रंग पंचमी का उत्सव देश ही नहीं विदेशों में भी प्रसिद्ध है. दो साल पहले गेर को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज की लिस्ट में जगह दिलाने की कोशिश हुई थी. इस साल फिर यही कोशिश है, जिसके चलते प्रदेश में इसे लेकर खासा उत्साह देखा जा रहा है. यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज सूची में शामिल होने के लिए तीन शर्तें पूरी करना जरूरी है. जैस कई पीढ़ी से चली आ रही परंपरा हो और उसका ग्लोबल कनेक्ट हो. विश्वप्रसिद्ध गेर की शुरूआत कैसे हुई और क्या महत्व है, पढ़िए…

 

रंगू पहलवान के लोटे से निकली गेर
रंग पंचमी से जुड़े कई किस्से सुनने में आते हैं. शहर के प्रसिद्ध कवि सत्यनारायण सत्तन ने बताया कैसे गेर की शुरूआत हुई. उन्होंने बताया पश्चिम क्षेत्र में गेर 1955-56 से निकलना शुरु हुई थी, लेकिन इससे पहले शहर के मल्हारगंज क्षेत्र में कुछ लोग खड़े हनुमान के मंदिर में फगुआ गाते थे एक दूसरे को रंग और गुलाल लगात थे. 1955 में इसी क्षेत्र में रहने वाले रंगू पहलवान एक बड़े से लोटे में केशरिया रंग घोलकर आने-जाने वाले लोगों पर रंग मारते थे. यहां से रंग पंचमी पर गेर खलने का चलन शुरू हुआ. रंगू पहलवान अपनी दुकान के ओटले पर बैठेक करते थे. वहां इस तरह गेर खेलने सार्वजनिक और भव्य पैमाने पर कैसे मनाएं चर्चा हुई. तब तय हुआ कि इलाके की टोरी कार्नर वाले चौराहे पर रंग घोलकर एक दूसरे पर डालेंगे और कहते हैं वहां से इसने भव्य रूप ले लिया.

एक इतिहास ये भी?
कहा जाता है गेर निकालने की परंपरा होलकर वंश के समय से ही चली आ रही है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक होलकर राजघराने के लोग पंचमी के दिन बैलगाड़ियों में फूलों और रंग-गुलाल लेकर सड़क पर निकल पड़ते थे. रास्ते में उन्हें जो भी मिलता, उन्हें रंग लगा देते. इस परंपरा का उद्देश्य समाज के सभी वर्गों को साथ मिलकर त्योहार मनाना था. यही परंपरा साल दर साल आगे बढ़ती रही. कोरोना के कारण 2020 और 2021 में आयोजन पर रोक लग गई थी. इस साल फिर वही जोश से पंचमी मनाई जा रही है.

क्यूं है प्रसिद्ध
300 साल से चली आ रही परंपरा
100 साल पहले सामाजिक रूप से मनाने की हुई शुरुआत
शहरभर में 3000 से ज्यादा पांडाल लगते हैं
1.5 करोड़ से ज्यादा लोग होते हैं शामिल
इंदौर की गेर विश्वभर में प्रसिद्ध विरासत
सभी जाति-धर्म के लोग शामिल होते हैं
देश के कोने-कोने से आते हैं पर्यटक

 

 

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